इस साल होली की कहानी पिछवाड़े के बगीचे से शुरू होती है, जहां पपीता का पेड़ रहता था। पेड़ चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान लिए खड़ा था, उसकी टहनियों पर नन्हे-नन्हे पीले पपीते लगे थे। पपीते के पेड़ के पास ही रंग-बिरंगे फूलों की क्यारी थी। गुलाब अपने लाल रंग में महक रहा था, पीले सूरजमुखी आकाश की ओर देख रहे थे, और नीले रंग की सुंदरियाँ इठला रहीं थीं। फूल आपस में होली की तैयारियों की बातें कर रहे थे।
फूलों ने मिठू की बात सुनकर समझ गए। उन्होंने मिलजुलकर एक दूसरे पर रंग डालने की योजना बनाई। होली के दिन, बच्चों का झुंड बगीचे में आया। उनके हाथों में रंगों की पिचकारी और बाल्टियाँ थीं। बच्चों ने फूलों पर रंग डाले। गुलाब लाल और गुलाबी हो गया, सूरजमुखी पीले और हरे रंग में रंग गया, और सुंदरियाँ नीले और बैंगनी रंग की हो गईं।
बगीचा एक रंगीन दुनिया बन गया। हवा में खुशियों के रंग घुल गए। पेड़-पौधे भी बच्चों के साथ होली खेल रहे थे। दूर से देखने पर ऐसा लग रहा था मानो होली का रंग आसमान तक जा पहुंचा हो। शाम ढलने पर बच्चे अपने घर चले गए। बगीचे में शांति छा गई। पेड़-पौधे रंगीन होकर भी खुश थे। उन्हें एहसास हुआ कि असली खुशी एक साथ मिलजुलकर रहने में और हर रंग का सम्मान करने में है। इस तरह होली की कहानी बगीचे में रंगीन होकर खत्म हो गई.